Poetry

आत्महत्या समाधान नहीं है।

~~स्वर्गीय पिता के नाम पुत्र का खत~~

प्रिय पिताजी,

सच कहूं तो अब ये दूर का रिश्ता सहा नहीं जाता,
आसमान से एक तरफ़ा शिकायत अब किया नहीँ जाता।

याद है मुझे वो दिन,
जब आपने वो खौफ़नाक कदम उठाया था
उस एक कदम ने हमारे परिवार की नींव को भी दहलाया था।

याद है मुझे वो शाम,
माँ गयी हुई थी बाज़ार
याद है मुझे,
आपने बनाये थे जो बहाने हज़ार
“थोड़ा खेल आ बेटा,
तब तक मैं हूँ कुछ काम कर लेता”।

उछलते कूदते मैं मैदान की ओर भागा था
अंजान था, अभागा था,
उस एक शाम के बाद
मेरा बचपन बदलने वाला था,
उस एक शाम के बाद
मै हर पल जलने वाला था।

क्या सोच कर आप यु मुँह मोड़ गए
क्या सोच कर अपने डर माँ के लिए छोड़ गए?
वो लेनदार आये थे आपके जाने के बाद
माँ रोई थी, और की थी कुछ वक़्त देने की फरियाद।

उस रोज़ मैंने अपने माता पिता दोनों को धधकते देखा था
पिता को खुशी से, माँ को मज़बूरी में खुद से दूर जाते देखा था।

आपके फ़र्ज़ माँ निभाना सिख गयी
घर की चीज़ें, हमारी गाड़ी सब बिक गयी,
पर माँ ने हिम्मत ना हारी,
क्या थी उनकी लाचारी
की जब अपनों ने भी मुँह मोड़ा
तब भी उन्होंने ज़िन्दगी का साथ ना छोड़ा?

मैं था वो लाचारी
मैं था वो ज़िम्मेदारी
जिसे माँ निभाती गयी,
खुद का पेट काटकर मुझे खिलाती गयी।

दस साल बीत गये उस शाम को
लोग तो भूल भी चुके हैं आपके नाम को
आपकी तरह अक्सर निराश हो जाया करता हूं,
पर अपनों को अकेले छोड़ने के नाम से बहुत डरता हूँ।

माँ बूढी हो चली है
आँखे उनकी धुंधली हो चुकी हैं,
पर माँ ने हि मुझे सिखाया है
आत्महत्या कायर किया करते हैं
शूरवीर ज़िन्दगी के कुरुक्षेत्र में डटकर लड़ा करते हैं।

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